स्पाइनल कॉर्ड की इंजरी है शरीर के लिए घातक
रीढ़ की हड्डी की नसों का वह समूह होती है, जो दिमाग का संदेश शरीर के अन्य अंगों खासकर हाथों और पैरों तक पहुंचाती है. तो वही स्पाइनल कॉर्ड में किसी भी प्रकार की चोट लगने से यह पुरे शरीर के लिए घातक हो सकती है. चोट को तीन प्रकारों में विभाजित किया गया है. जैसे नसों में हल्की चोट या नस का थोड़ा सा फटना. नस के पूरा फट जाने को स्पाइनल कॉर्ड में ट्रान्सेक्शन के नाम से भी जाना जाता है. आपको बता दे कुछ सालों में इसी दर्द के इर्दगिर्द घूमने वाली स्पाइनल कॉर्ड की वर्टिब्रा एल थ्री या एल फोर, सी फोर और सी फाइव में दर्द आदि की परेशानियां भी सामने आने लगी हैं. हर पांचवें व्यक्ति को कंधे, पीठ या कमर के निचले हिस्से में खिंचाव और दर्द रहता है.
रीढ़ की हड्डी नसों की केबल पाइप जैसी होती है. जब यह पाइप संकुचित हो जाती है, तो नसों पर दबाव से ये लक्षण उत्पन्न हो सकते हैं …
पैरों में जलन महसूस होना,पैरों में सियाटिका की समस्या होना,सुन्नपन या झुनझुनी का अहसास होना,गर्दन, पीठ व कमर में दर्द और जकड़न,लिखने, बटन लगाने और भोजन करने में समस्या,गंभीर मामलों में मल-मूत्र संबंधी समस्याएं उत्पन्न होना,चलने में कठिनाई यानी शरीर को संतुलित रखने में परेशानी,कमजोरी के कारण वस्तुओं को उठाने या छोड़ने में परेशानी,शुरू में उपर्युक्त लक्षणों के प्रकट होने पर पीड़ित व्यक्ति को कुछ देर बैठने पर आराम मिल जाता है, लेकिन वक्त गुजरने के साथ मरीज न चल पाता है और न खड़ा हो पाता है. इस स्थिति तक पहुंचने में कुछ साल लग जाते हैं. इस दौरान पीड़ित व्यक्ति डॉक्टर को दिखाता है व दवाओं से ही इलाज करवाता है.
बचाव व रोग का उपचार करने के लिए :
व्यायाम इस रोग से बचाव के लिए आवश्यक है. देर तक गाड़ी चलाने की स्थिति में पीठ को सहारा देने के लिए तकिया लगाएं. कंप्यूटर पर अधिक देर तक काम करने वालों को कम्प्यूटर का मॉनीटर सीधा रखना चाहिए. कुर्सी की बैक पर अपनी पीठ सटा कर रखना चाहिए। थोड़े-थोड़े अंतराल पर उठते रहना चाहिए. उठते-बैठते समय पैरों के बल उठना चाहिए. दर्द अधिक होने पर चिकित्सक की सलाह से दर्द निवारक दवाओं का प्रयोग किया जा सकता है. फिजियथेरेपी द्वारा गर्दन का ट्रैक्शन व गर्दन के व्यायाम से आराम मिल सकता है.