क्या अब है देश को सरकारी बैंकों की जरूरत
केंद्रीय वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण द्वारा 10 सरकारी बैंकों का विलय कर चार बैंक बनाने की घोषणा से कई चर्चाओं को जन्म दिया है भारतीय रिजर्व बैंक रबी के पूर्व गवर्नर डी. सुब्बाराव ने एक समाचारपत्र के लिए लिखे एक लेख में कहा कि ग्रामीण क्षेत्रों में जन-जन तक बैंकिंग सुविधा को पहुंचाने तथा गरीबी- उन्मूलन की विभिन्न योजनाओं के क्रियान्वयन में मदद के लिए 50 साल पहले बैंकों का राष्ट्रीयकरण किया गया था। लेकिन अब यह सवाल पूछने का वक्त आ गया है, ‘क्या हमें अब भी सरकारी बैंकों की जरूरत है क्या वित्तीय क्षेत्र इतना व्यापक नहीं हो गया है कि वह सरकार के बिना खुद वित्तीय मध्यस्थता का काम करेगा। अगर इन सबसे छुटकारा मिलेगा तो सरकार की ताकत और उसके समय का बेहतर इस्तेमाल हो सकता है.
भारतीय स्टेट बैंक SBI के चेयरमैन रजनीश कुमार ने एक साक्षात्कार में कहा, ‘हमारे जैसी विशाल आबादी वाले देश को समावेशी बैंकिंग की बेहद जरूरत है, जो काफी हद तक सरकारी बैंकों द्वारा अंजाम दिया जा रहा है। अगले 10-15 वर्षों तक हमें उनकी जरूरत पड़ेगी, क्योंकि हर बैंक कॉमर्शल है और शेयर बाजार में सूचीबद्ध है, लेकिन सरकारी बैंकों के साथ कुछ खास दायित्व जुड़े हैं।’
इसी के साथ आरबीआई के एक और पूर्व गवर्नर रघुराम राजन अपनी किताब में लिखते हैं, ‘कुछ निजी बैंकों में भी गवर्नेंस की हालत खराब है। इस तरह के ऑनरशिप की पहचान की जरूरत बस गवर्नेंस बेहतर करने की दिशा में एक योगदान होगा। इसके बजाय, गवर्नेंस में सुधार के लिए हमें व्यवहारिक तरीकों पर विचार करना होगा। बैंकों के गवर्नेंस में सुधार का काम करते हुए एक या दो मझोले बैंकों का निजीकरण और कुछ अन्य बैंकों में सरकार की हिस्सेदारी 50 फीसदी से कम की जा सकती है।’
नीति आयोग के पूर्व चेयरमैन अरविंद पनगढ़िया बैंकों के निजीकरण के लिए तीन कारण गिनाते हैं। पहला, शोध में यह बात सामने आई है कि सरकारी बैंकों की तुलना में निजी बैंकों की उत्पादकता और ग्रोथ अधिक होती है। दूसरा, विभिन्न समितियों की रिपोर्ट में यह बात सामने आई है कि सरकारी बैंकों के बोर्ड बैंक को जोखिम में डालते हैं और कुछ हासिल करने की ललक भी उनमें नहीं होती। तीसरा, आरबीआई द्वारा निजी बैंकों को दिशा-निर्देशों के जरिये अधिकतर सरकारी लक्ष्यों को हासिल किया जा सकता है। कुल मिलाकर, वे दशकों से प्राथमिक क्षेत्रों को कर्ज देने का काम कर रहे हैं।