अर्थव्यवस्था पर पड़ा प्लास्टिक का प्रभाव

पूरे देशभर के किसी भी राज्य में जब प्लास्टिक पर बैन लगाया जाता है, तो अक्सर इसकी खबर मिलती है कि इस वजह से कारोबार को इतना नुकसान हुआ। लेकिन क्या आपने कभी सोचा है कि प्लास्टिक के इस्तेमाल से अर्थव्यवस्था को कितना नुकसान पहुंचता है। यह सोचना थोड़ा मुश्किल है। दरअसल जब आप इसके असर के बारे में सुनेंगे तो लगेगा कि इस्तेमाल न करना ही बेहतर है

सूत्रों के अनुसार बताया गया है प्रत्येक टन प्लास्टिक के बदले हम 33 हजार डॉलर 23 लाख 74 हजार रुपए के पर्यावरणीय मूल्य का नुकसान करते हैं। वहीं, हम एक साल में लगभग 300 मिलियन टन 3000 लाख टन प्लास्टिक प्रोड्यूश करते हैं। इसका सबसे ज्यादा असर फिशिंग इंडस्ट्री और टूरिज्‍म इंडस्ट्री पर पड़ रहा है।

प्लास्टिक ने टूरिज्‍म इंडस्ट्री को भी काफी नुकसान पहुंचाया है। समुद्री बीच टूरिज्‍म के लिए बड़ा केंद्र है। गोवा जैसे राज्य इन बीचेस से पैसा कमा रहे हैं। प्लास्टिक का असर इन पर भी बहुत गहरा पड़ा है। जो प्लास्टिक और कचरा समुद्र में जाता है, वो हाई टाइड के समय समुद्र उसे वापस कचारा किनारे पर छोड़ जाता है। इसका सीधा असर पर्यटक पर पड़ता है। इसी साल जनवरी में समुद्र ने हाई डाइड के दौरान 300 टन कचरा जूहू बीच पर छोड़ दिया था

आज की परिस्थिति में सरकारें कृषि में प्लास्टिक के इस्तेमाल को बढ़ावा दे रही हैं। ग्रीन हाउस कल्टिवेशन, माइक्रो इरिग्रेशन और प्लास्टिक उपकरण के इस्तेमाल को बढ़ावा मिल रहा है। इसका फायदा तुरंत दिख रहा है, लेकिन इसका नुकसान ज्यादा बड़ा है। प्लास्टिक से निकलने वाले रसायन खेतों के माध्यम से हमारे फूड चैन में शामिल हो रहे हैं। वहीं, प्लास्टिक से टूटकर पहले माइक्रो प्लास्टिक और फिर नैनो प्लास्टिक में बदल जाता है। यह अगर खेत के मिट्टी में मिल जाए तो सिंचाई सही तरीके से नहीं हो पाती। प्लास्टिक उत्पादन से एक तरफ आय तो हो रही है, लेकिन दूसरी तरफ इसका बुरा प्रभाव सीधे अर्थव्यवस्था पड़ रहा है। इसका सबसे ज्यादा इम्पैक्ट ग्रामीण अर्थव्यवस्था पर पड़ रही है। चाहे वह किसान हो या मछुआरा। ये दोनों ग्रामीण इकोनॉमी के प्रमुख अंग हैं।

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